वैष्णव धर्म No Further a Mystery
वैष्णव धर्म No Further a Mystery
Blog Article
) से संबंधित कोई और भी सवाल हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें।
दूसरे परियोजनाओं में पठन सेटिंग्स
मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।। ओउम जय।।
विष्णु के अवतारों की विवेचना
पू.) इस विषय में विशेष महत्व रखता है। इस शिलालेख का कहना है कि हेलियोदोर ने देवाधिदेव वासुदेव की प्रतिष्ठा में इस गरुडस्तंभ का निर्माण किया था। यह दिय का पुत्र, तक्षशिला का निवासी था जो राजा भागभद्र के दरबार में अंतलिकित (भारतीय ग्रीक here राजा 'एंटिअल किडस') नामक यवनराज का दूत बनकर रहता था। यूनानी राजदूत अपने को 'भागवत' कहता है। इस शिलालेख का ऐतिहासिक वैशिष्ट्य यह है कि उस युग में वासुदेव देवाधिदेव (अर्थात् देवों के भी देव) माने जाते थे और उनके अनुयायी 'भागवत' नाम से प्रख्यात थे। भागवत धर्म भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था और यह विदेशी यूनानियों के द्वारा समादृत होता था। पातंजल महाभाष्य से प्राचीनतर महर्षि पाणिनि के सूत्रों की समीक्षा भागवत धर्म की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए नि:संदिग्ध प्रमाण है।
क्या आर्य सिन्धु सभ्यता के निर्माता थे?
श्रीमद्भागवत गीता इस सम्प्रदाय का मान्य ग्रन्थ हैं.
मारिज विण्टरनित्ज (१९३२) : सम्भवतः प्रथम सहस्राब्दी का आरम्भिक काल
वैष्णव धर्म का विकास भगवत धर्म से हुआ।
भगवत धर्म का सिद्धांत भगवदगीता में निहित है।
कल्कि(कलि) – यह भविष्य में होने वाला है। कल्पना की गयी है, कि कलियुग के अंत में विष्णु हाथ में तलवार लेकर श्वेत पर सवार हो पृथ्वी पर अवतरित होंगे। वे दृष्टों का संहार करेंगे तथा पृथ्वी पर पुनः स्वर्ग युग स्थापित होगा।
'सेवाभारती' - वैष्णव धर्म से सम्बन्धित विविध सूचनाओं से परिपूर्ण श्री वेंकटचारी का तमिल-हिन्दी-अंग्रेजी ब्लॉग
When moksha is achieved, the cycle of reincarnation is damaged as well as soul is united with Vishnu right after death, while keeping their distinctions in Vaikuntha, Vishnu's abode.[268] Moksha will also be reached by total surrender and saranagati, an act of grace from the Lord.[269] Ramanuja's Sri Vaishnavism subscribes to videhamukti (liberation in afterlife), in contrast to jivanmukti (liberation Within this everyday living) present in other traditions in just Hinduism, including the Smarta and Shaiva traditions.[270]
श्रीरूप गोस्वामी : लघुभागवतामृतम्, वेंकटेश्वर प्रेस, मुंबई;
Report this page